दो घनिष्ठ मित्र थे — सोनू और अनिल।
दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि मोहल्ले में हर कोई उनकी मिसाल देता था। सोनू समझदार और शांत स्वभाव का था, वहीं अनिल नटखट और शरारती था। उसकी आदत थी बेवजह दूसरों को परेशान करना, और यही बात सोनू को सबसे ज़्यादा खटकती थी।

फिर भी, जब भी किसी को मदद की ज़रूरत होती, दोनों बिना कहे एक-दूसरे के पास पहुँच जाते। उनकी दोस्ती इतनी सच्ची थी कि छोटी-मोटी लड़ाई के बाद भी कुछ ही देर में फिर से साथ हो जाते।
एक दिन, घूमते-घूमते दोनों की आपस में बहस हो गई। बात इतनी बढ़ गई कि गुस्से में सोनू ने अनिल को धक्का दे दिया। अनिल गिरने ही वाला था कि सोनू ने तुरंत उसका हाथ पकड़कर उसे बचा लिया।
अनिल ने हैरानी से पूछा –
“पहले तूने धक्का क्यों दिया और फिर बचाया क्यों?”
सोनू ने गहरी साँस लेकर कहा –
“क्योंकि तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। मैं तुझे गिरते देख नहीं सकता। लेकिन अनिल, तू जो बेजुबान जानवरों को तंग करता है, वो बिल्कुल गलत है। जानवर भी दर्द महसूस करते हैं, बस बोल नहीं पाते। आज मैंने तुझे एहसास दिलाया कि जब जान पर बन आती है तो कैसा लगता है। हमें कभी भी बेकसूर को परेशान नहीं करना चाहिए।”
सोनू की बात सुनकर अनिल की आँखें भर आईं। उसने कहा –
“तू सही कहता है। आज से मैं किसी को तंग नहीं करूँगा। बल्कि जितना हो सके, मदद करूँगा।”
दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और हँसते-हँसते घर लौट आए।
क्योंकि सच्ची दोस्ती वही होती है, जो हमें सही राह दिखाए।
